लप्पड़ … !!!
जिंदगी की इस दौड़ में ,
हमने खाए कई लप्पड़ !!
छोटे जो थे , करी शरारत ,
कोई न देखे , हमरी नजाकत ;
माता जी ने खींच लगाए ,
हुमने खाए कई लप्पड़ !!
बाल अवस्था , हुई पुरानी ,
हर कक्षा में , वही कहानी ,
याद हमें पर कुछ न होता ,
भूंसे में अब कुछ न जाता ,
टीचर जी ! हम पर चिल्लाए ,
हुमने खाए कई लप्पड़ !!
युवा अवस्था , बड़ी सयानी ,
इक कालेज में , बिसरी जवानी ,
एक सुन्दर बाला हमको भायी ,
पहलवान था , पर उसका भाई ,
भाई !! साहब ने खूब बाजाया ,
हुमने खाए कई लप्पड़ !!
रोज़गार , एक बड़ी मुसीबत ,
रोज होती , वाही कवायद ,
काम-काज में मन न लगे ,
बहानों से भी जब काम न चले ,
बॉस !! तब हम पर घुस्साए ,
हुमने खाए कई लप्पड़ !!
क्या सूझी जो , ब्याह रचाया ,
अपने हाथों , गला दबाया ,
बीबी जी ने कुछ चीज़ मंगाई,
बात हमें पर याद न आई ,
श्रीमतीजी !! हम पर झल्लायीं ,
हुमने खाए कई लप्पड़ !!
प्रौड़ अवस्था , अब है बाकी,
कब्र में अपनी , आधी काठी ,
बच्चों को भी हम न भायें ,
खूसट कह कर हमें चिडायें ,
अब तो बस भगवान् बचाए ,
हुमने खाए कई लप्पड़ !!
. – संभव