बनारसी ठग …!!!
ठगों की नगरी , जिला बनारस,
आ पहुंचे हम , एक दिवारस ;
ट्रेन से उतरे , चप्पल गायब,
सोचा ही था , क्या होगा अब ?
पलट के देखा , बैग न पाया ,
अब तो हमरा , दिल घबराया ;
जल्द ही हमने , रपट लिखाई ,
थानेदार को , कुछ भेंट चढाई |
निकले बहार तो , जोर से आई ,
पैखाने तक , दौड़ लगाई ;
पतलून वहीँ पर , हमने गंवाई
कच्छे ने थी , इज्ज़त बचाई |
बटुए का था , बचा सहारा ,
खोल के देखा , खाली सारा !!
बुशर्ट से अपनी , तब ली विदाई ,
उन पैसों की, टिकट बनायी |
ट्रेन में बैठे , शर्म थी आई,
देख रही थीं , सबकी लुगाई ;
बस !! जान बची तो , लाखों पाए ,
लौट के नंगे , घर को आये !!!
. – संभव
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